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कवक के सामान्य लक्षण का बताइए ?

कवक के सामान्य लक्षण (general characters of fungi)  - 1. कवक सर्वव्यापी होते हैं तथा अन्य जीवित पोषको (living host) पर अथवा सड़े गले पदार्थों पर मृतोपजीवी (saprophytic) जीवनयापन करतें हैं। 2. इनका शरीर सुकायवत् (thalloid)  होता है अर्थात् इसमें जड़ , तना एवं पत्ती का अभाव होता है। सुकरात गैमिटोफाइटिक (gametophytic) होता है। 3. इनका सुकाय तन्तुवत् (filamentous) एवं प्रायः शाखित (branched) होता है तथा यह पट्टयुक्त अथवा पट्टरहित होता है। पट्टरहित सुकरात एककोशिकीय एवं बहुनाभिकीय होता है। ऐसे सूकाय को सीनोसिटिक कहते हैं।  4. इनके प्रत्येक तन्तु को कवक तन्तु या हाइफी कहते हैं। बहुत -से हाइफी मिलकर एक कवक जाल बना लेते हैं। कुछ कवकों में कवक तन्तु अनुपस्थित होता है तथा वे एककोशिकीय गोलाकार संरचना के रूप में होते हैं। उदाहरण - यीस्ट। 5. इनमें एक स्पष्ट कोशिका भित्ति पायी जाती है, जो कि फंगस सेल्यूलोज एवं काइटिन की बनी होती है । काइटिन, एसिटाइल ग्लूकोसैमिन का बहुलक होता है। काइटिन के अलावा कवकों की कोशिकाभित्ति   में ग्लूकेन्स एवं ग्लाइकोप्रोटीन्स भी पाये जाते हैं।

विषाणु (viruses)

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  विषाणु क्या है ? विषाणुओं की प्रकृति एव सरचना का वर्णन कीजिए ?                              अथवा विषाणु की संरचना एव प्रकृति का वर्णन कीजिए।                             अथवा  निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (a) टी एम वी ( T.M.V.) अथवा टोबैको मोजैक वायरस, (b) विषाणु की संरचना (C) विषाणु की प्रकृति, (d) विषाणुओं के गुण ।                             अथवा विषाणु पर निबंध।                             अथवा  पादप वायरस पर टिप्पणी लिखिए।                             अथवा  विषाणु की संरचना , गुणन एव आर्थिक महत्व का वर्णन कीजिए। उत्तर -।               विषाणु       ...

लाइकोपोडियम के जीवनवृत्त का संक्षिप्त विवरण दीजिए।

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  लाइकोपोडियम का जीवन-चक्र ( life cycle of lycopodium ) लाइकोपोडियम का पौंधा स्पोरोफाइटिक होता है। इसमें प्रजनन बीजाणुओं द्वारा होता है। ये बीजाणु(spores) बीजाणुधानियों (sporangium) के अन्दर बनते हैं। इसकी बीजाणुधानियां पत्ती सदृश्य संरचनाओं के ऊपर लगी होती हैं, जिन्हें स्पोरोफिल (sporophyll) कहते हैं। स्पोरोफिल पौंधै के ऊपरी भाग में एक मुख्य कक्ष के चारों ओर अत्यधिक संख्या में चक्रों में व्यवस्थित रहती हैं और एक शंकु (cone) का निर्माण करती हैं। प्रत्येक बीजाणुधानी एक वृक्काकार (kidney shaped ) रचना होती है, जिसके अन्दर एक ही प्रकार के बीजापु (homospores) भरे रहते हैं इन बीजाणुधानियों का विकास यूस्पोरेंजिएट प्रकार का होता है अर्थात इसका निर्माण प्रारम्भिक कोशिकाओं के एक समूह से होता है।

टेरिडोफाइटा ( pteridophyata)

 टेरिडोफाइटा जिन्हें संवहनी क्रिप्टोगेम्स (vascular cryptogames) के नाम से भी जाना जाता है, एम्ब्रियोफाइटा (embryophyata) समूह का सबसे बड़ा समूह है । क्रिप्टोगेम्स (cryptogames) शब्द का उपयोग सर्वप्रथम लिनियस (linneus) ने सन् 1754 में उन पौधों के लिए किया था, जिनमें स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाले प्रजननांगों (sex organs) का अभाव होता है। टेरिडोफाइटा (pteridophyata) शब्द दो ग्रीक (greek) शब्दों pteron (=feather) तथा phyton (=plants) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ पक्षवत (pinnate) या पंखनुमा (feather or fonds like) पत्तियों युक्त पादप होता है । इस प्रकार "टेरिडोफाइटा" ऐसे संवहनी क्रिप्टोगेम्स (vascular cryptogame) का समूह है,। जिनमें पुष्पों (flowers) एवं बीजों का अभाव होता है तथा जिनमें पंखनुमा पत्तियां पायी जाती हैं।      टेरिडोफाइटा के सामान्य लक्षण (General characters of pteridophyata) स्पोरोफाइट के लक्षण-1. इनका पादपकाय बीजाणुदि्भदी (sporophytic) होता है जो कि स्वंपोषी या आत्मनिर्भर (indepresent) होता है। 2. स्पोरोफाइट में संवहन तंत्र (vascular system) उपस्थित होता है...

ब्रायोफाइट्स के सामान्य लक्षण ,

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                                ब्रायोफाइट्स सामान्य लक्षण  (1) ये उभयचर प्रकृति के होते है तथा ये प्राय नम (moist),छायादार स्थानों पर पाए जाते हैं। रिक्सिया फ्लूटेंस एक जलीय प्रजाति है। (2) इनका पादप शरीर प्राय सुकायवत उदाहरण- रिक्सिया (riccia), मार्केंसिय (marchantia) होता है, परंतु उच्चवर्गीय ब्रायोफाइट्स में पादप मूलाभास(Rhizoids) तना एव पत्तियों में विभेदित होता है उदाहरण - मासेस (mosses)।   (3) पादप शरीर युग्मकोदि्भद (Getophytic) होता है तथा यह मूलभास (Rhizoids) के द्वारा अधोस्तर (substratum) से खाद्य पदार्थों  एवं जल आदि का अवशोषण करता है। (4) इनमें सवहनी उतको का अभाव होता है । (5) इनमें सवहनी उतकों (vascular tissues) ka अभाव होता है। (6) स्पोरोफाइटा (sporophyte) का निर्माण निषेचन के पश्चात होता है तथा यह युग्मकोदि्भद(Getophyte) पर पूर्ण अथवा आशिक रूप से निर्भर रहता है।